शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

रामायण कें पात्र: 1

रामयण की जब कहीं भी और कैसी भी व्याख्या की जाती है तब -तब केकैयी के चरित्र के नये से नये आयाम उभर कर सामने आते हैं । सामान्य दृश्टि से देखने , जानने पर केकैयी का पात्र रामायण में एक खलनायिका के पात्र सा ही नजर आता है और कमोबेष हर आम जन उसे ही श्री रामचन्द्र जी के वनवास का दोशी मानता है ,और दषरथ की मृत्यु का मूल करण भी केकैयी को जाना व माना जाता है । एक आम धारणा यह है कि केकैयी एक पद लोलुप व केवल अपने ही पुत्र भरत के हित का ध्यान रखने वाली आम औरत जैसे चरित्र वाली महिला थी जो कि अपने रूप सौन्दर्य के बल पर महाराजा दषरथ को अपने काबू में किये हुये थी और उसे राम का राजा बनना कतई भी नहीं सुहाया था सो उसने राजा दषरथ के द्वारा उसे दिये गये तीन वरदानों के षस्त्र का इस्तेमाल मौका मिलते ही राम को वन भेजने व भरत को अयोध्या का राजा बनाने के लिये कर लिया ।
इतना ही नहीं केकैयी के इस कृत्य की पृश्ठभूमि में उसकी प्रिय सेविका मंथरा का भी अहम् रोल माना जाता है । रामायण के अधिकांष जानकारों की राय यही है कि अपने मायके कैकस प्रदेष से अपने साथ लाई गई इसी दासी ने केकैयी के मन में संषय व संभ्रम पैदा कर , उसे कौषल्या के राजमाता बनने के बाद की परिस्थितियों का डर दिखा कर,महाराजा दषरथ से अपने काफी पुराने वर मांग लेने को न केवल उकसाया वरन् उसे ये भी बताया कि उसे क्या व कैसे मांगना व पाना है । एक बड़ी ही स्पश्ट धारण यह भी है कि इसी सलाह के चलते राम के राजतिलक की घोशणा होते ही केकैयी कोप भवन में चली गई व उल्लास के सारे माहौल को ग़म व त्रासदी में बदल दिया और अंततः न केवल राम को वन भिजवा दिया अपितु अपने पति की मौत का कारण भी बनीं । आज भी हिन्दू घरों में कलह का कारण बनने वली औरतों को तानाकषी में केकैयी व चुगलखोरी करने व भड़काने वली औरतों को मुथरा के नाम से बुलाकर अपमानित किया जाता है । वैसे एक नजर में देखने पर यें दोनों ही पात्र एक प्रकार से से विघ्न की जड़ लगते भी हैं अन्यथा तो श्रीराम आसानी से अवध के राजा बन जाते और न तो उन्हे वन वन भटकना पड़ता और न ही सीता को रावण के हाथाेिं अपहरएा की पीड़ भुगत अंततः वनवास का त्रासदभरा जीवन जीन होता और न ही उन्हे पृथ्वी में समाना पड़ता यानि कि अगर केकैयी व मंथरा अपना खेल नहीं खलती तो सब कुछ षुभ ही षुभ होता । पर , जरा सोचिाए यदि ऐसा ही होता तो क्या रामायण जैसेक ग्रंथ के प्रणयन की जरुरत भी पड़ती अथवा क्या तब रीाम मर्यादा पुरुशोत्तम राम बन पाते ? अथवा यदि ऐसा हो गया होता तो क्या राम एक साधारण्र से राजा के रूप में षासन करके एक आम राजा ही न रह गए होते । तब भरत के भातृत्व प्रेम और सीता की पति परायणता का साक्षी कौन हुआ होता ? तब लक्ष्मण की भातृभक्ति कैसे दिखती ? यदि राम वन नहीं गये होते तो वन में रावण के हाथों निरंतर प्रताडि़त होते ऋशि मुनियों का उद्धार कैसे हुआ होता ? यदि राम -रावण का युद्ध ही न हुआ होता तो तो त्रेता में स्थापित हुआ ‘‘सत्य की असत्य पर जीत’’ का एक सार्वकालिक मिथ भला किस तरह से अस्तित्व में आता ?यानि एक जरा सी गहन दृश्टि मिलने पर ही केकैयी को सकारात्मक रूप से देखने पर इन सब चीजों का श्रेय दिया जा सकता है एक प्र्रकार से उसे व मंथरा को बावुजूद सारी खामियों के , सारे फिसाद की जड़ होने बाद भी रामायण का ऐसा आधारबिंदु माना जा सकता हैं जिनके बिना रामायण की कल्पना भी षायद ही की जा सके ।
वैसे केकैयी या मंथरा को सोरे दोशों की जड़ मानना भी षायद समीवीन न हो क्योंकि राम को वन भेंजने व रावण् तथा दूसरे राक्षसों के नाष की पूर्व योजना तो देव गण पहले बना चुके थे ।मंथरा केकैयी को तों महज एक माध्यम ही बनाया गया । कहा जाता है कि मंथर की जिह्वा साक्षात सरस्वती का वास कराया गया , केकैयी के मन मस्तिश्क को भी पूरी तरह से देवों ने बदला तब कहीं जाकर उने राम के वनवास के वरदान मांगे । यह भी एक तथ्य है कि केकैयी रा को किसी भी तरह से अपने बेटे भरत से कम नहं चाहती थी बल्कि राम तों उन्हे स्वयं व भारत से भी कहीं ज्यादा प्रिय थे । पर पूवै जन्म के पापों का प्रायष्चित न करने के कारण उन्हे यह अपयष झेलना पड़ा । राम से उनके प्यार को इसी बात से ही जाना जा सकता है कि भरत के ननिहाल से वापस आते ही स्वयं केकैयी ने ही उन्हे अपनी भूल को ठीक करने कें लिये उन्हे राम को वापस लाने के लिये न केवल भेजा वरन् वह स्वयं भी उनके साथ गई । स्वयं राम ने भी जब देखा कि केकैयी उनके वनवास का सारा दोश स्वयं पर ही ले रही है तो उन्होने स्वयं भी इसे विधना का रचा हुआ खेल बताकर केकैयी को दुखी न होने को कहा ।
कैकेयी एक बहुत ही बहादुर व पति परायण स्त्री थी तभी तो देवासुर संग्राम में वें राजा दषरथ के साथ जान हथेली पर रखकर गई थीं और संकट के समय दषरथ के रथ के पहिए में धुरी की जगह में अपनी उंगली लगाकर उनकी जान बचाने में वह सफल हुई थीं । उन्हे एक कुषल राजनीति की ज्ञाता होने के नाते दषरथ अन्य रानियों से ज्यादा प्यार करते थे । वें एक अप्रितम सुंदरी भी थी वें अत्यंत बुद्धिमान व चतुर मानी जाती थी और अयोध्या में उन्हे बहुत ही सम्मान की नज़र से देखा जाता था । बेषक यदि वें राम को वन भेजने जैसे कृत्य में लिप्त न हुई होती तो इतिहास उन्हे एक नायिका के रूप ही याद करता ।
घनष्याम बादल
रुड़की फोन 9412903681

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