शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011
अमावस को पूनम करने का पर्व !
प्रकाषपर्व पर विषेश:
घनष्याम ‘बादल’
कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला पर्व दीपावली ‘‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’’ के चिंतन बढ़ाने को आगे बढ़ाने वाला पर्व है । जीवन में सबके साथ हिलमिल कर रहने , सबको उजास बांटने , सबके साथ मिलकर जलने , प्रकाषित होने और सबको सुख का प्रकाष बांटने की भावना को पुश्ट करता है असंख्य दीये जलाने यह पर्व । ये ही वह दिन होता है जब उत्तर से दक्षिण और पूरब से पष्चिम तक सब हिंदू अपने घरों,दुकानो ,आंगनों और आवासीय तथा व्यापारिक परिसरों कों प्रकाष से सराबोर कर काली अमावस को भी सबसे ज्यादा प्रकाषवान बनाने का अद्भुत चमत्कार कर अंधकार पर प्रकाष की जीत का परचम लहराते हैं । जीवन में सबके साथ हिलमिल कर रहने और सबको सुख का प्रकाष बांटने की भावना को पुश्ट करता है असंख्य दीये जलाने यह पर्व । इस पर्व की एक खास बात यह भी है कि यह व्यक्ति के साथ साथ पूरे समाज की खुषहाली की पैरवी करने वाला पर्व है । यह इस बात को भी इंगित करता है कि व्यक्ति समाज के लिये है और समाज व्यक्ति के लिये । एक दूसरे के बिना दोनों ही अपूर्ण और अधूरे हैं ।
दीपावली हर तरह से सामंजस्य की पैरवी करता हुआ पर्व है । ये पर्व अकेलेपन की नहीं वरन् मिलजुलकर रहने और सहअस्तित्व को प्रधानता देने का संदेष लिये आता है । दीवाली भारत में केवल धन सम्पदा पाने के लिये ही नहीं मनाई जाती वरन् इसके मनाने के पीछे और भी कई कारण छिपे हुये हैं अनेकों मान्यताओं के चलते किसी न किसी कारण से दीवाली मनाई जा रही है ।
इस दिन हर हिंदू अपनी सामथ्र्य के अनुसार अपने घर और व्यापारिक तथा आवासीय परिसर को रोषन करने का भरपूर प्रयास करता है और यथाषक्ति लक्ष्मी को प्रसन्न्न करने का प्रयास भी करता है । इस दिन के बारे में यह एक आम धारणा है कि जो व्यक्ति आज के दिन कुछ धन या सम्पन्नता सूचक वस्तु प्राप्त कर लेता है उसे वर्शपर्यंत ही षुभ लाभ प्राप्त होता रहता है ।
मिथकीय दृश्टि से भगवान ने महादानी, पर अहंकारी हो चले महाराजा बलि के अहंकार को चूर - चूर करने के लिये आज के ही दिन उनके राज्य में पंहुचकर वामन रूप में उनसे केवल तीन गज जमीन लेने के बहाने से न केवल उनका सारा राज्य ही ले लिया था अपितु उन्हे भी बड़ी चतुराई से पृथ्वी लोक से सीधे पाताल लोक भेज कर पृथ्वी की राक्षसों से रक्षा की थी । मर्यादा पुरुशोत्तम श्री राम के रावण को मारकर और सीता को वापस जीतकर अयोध्या लौटने की खुषी में दीवाली मनाते हैं तो कुछ इस विष्वास के साथ दीवाली मनाते हैं कि इस दिन धन की देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने निकलती है । साहित्यकार महादेवी वर्मा का जन्मदिन भी दीवाली को मनाते हैं रचनाधर्मिता में विष्वास रखने वाले सृजनहार ।
दर्षन व आध्यात्म के विद्वान मानते हैं कि दीवाली अन्नमयकोष से प्राणमयकोष की तरफ प्रस्थान करवाती है। जिससे मानव मुक्ति की तरफ कदम बढा़ता है , और दैवीय ऊर्जा प्राप्त करने की तरफ कदम बढ़ाता है ।
जबकि विज्ञान की नजर में बरसात के बाद वायुमण्डल में आये अनेकों कीट पतंगों को नश्ट करने के लिये वातावरण में पर्याप्त मात्रा में अग्नि ,उश्मा व रोषनी का होना आवष्यक होता है और दीवली का पर्व ष्ये सब लेकर आता है यानि दीवाली वैज्ञानिक दृश्टि से भी एक बहुउपयोगी पर्व है जोंवातावरण से नमीं को दूर करके उसे षुद्ध करता है , हालांकि अब जिस तरह से और जितनी ज्यादा आतिषबाजी होती है उसके चलते भयंकर प्रदूशण भी हो रहा है जिससे इस पर्व का आनंद कम हो रहा है और बीमारों व पर्यावरण के प्रति जागरुक लोगों को तक़लीफ़ हो रही है जो जायज भी हैे ।
सामान्य जन के लिये जहां दीपावली रोषनी करने , खाने - खिलाने , मिलने - मिलाने ,साफ सफाई करने ,घरों को सजाने संवारने ,का पर्व है वहीं सुधि जनों और विद्वानों के लिये दीपावली के मायने कहीं ज्यादा गहरे होते हैं । विद्वानों और ज्ञानीजनों के लिये दीपावली अज्ञान रूपी अंधकार को नश्ट कर आत्मा को ज्ञान रूपी प्रकाष से जगमगाने का पर्व होता है , वें इस पर्व से वर्श भर में किये या हो गये अषुद्ध कृत्यों से मुक्ति पाने की राह देखते रहते हैं । कर्मकांडों में यकीन रखने वाले व तां़िक दीवली को आधी रात के समय अपनी मनोकामना पूरी करने के लिये विभिन्न अनुश्ठान करते हैं तो धनी लोग इस दिन अपने धन की वृद्वि की कामना से लक्ष्मी पूजन करते हैं तो निर्धनजन अपनी आराधना और पूजा के माध्यम से लक्ष्मी को अपने घर आने की मनुहार कर अपने भविश्य को संवारने की कामना करते हैं ।
जीवन में प्रकाष एक अलग ही महत्व रखता है जो जीवन को को हर खुषी से आलोकित कर देता है और बेषक दीवाली जीवन में सत् का ही प्रकाष लेकर आता है।
घनष्याम ‘बादल’
गोविंदनगर, रुड़की
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