सोमवार, 9 नवंबर 2009

कई और छोडेंगे हिंदुस्तान

देहरादून में हिंदुस्तान के स्थानिये संपादक दिनेश के छोड़ देने के बाद अब देहरादून और रूडकी से भी हिंदुस्तान को छोड़ने की तैयारी की जा रही है। देहरादून से सुशिल उपधयाये और रूडकी से सीमा श्रीवास्तव, दीपक के नामो की चर्चा चल रही है। ये सभी अब कभी भी हिंदुस्तान को छोड़ सकते है। उधर, गोपाल नारसन फ़िर से हिंदुस्तान में लौट सकत है।
खबरची लाल देहरादून।

रविवार, 24 मई 2009

मत पूछ

बाज़ी चाहे या तूफ़ान है, दुनिया मेरे आगे

होता है शबो रोज तमाशा मेरे आगे

होता नेहा गर्द में सेहरा मेरे आगे

घिसता है जमीं खाक , दरिया मेरे आगे

मत पूछ की क्या हाल है मेरा तेरे पीछे

तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे

इमाम मुझे रोके है जो खींचे खर्फ़

काबा मेरे पीछे कलीसा मेरे आगे

दो हाथों को जुम्विश है आंखों में तो दम है

रहने दो अभी सागरों मीणा मेरे आगे

--------------मिर्जा ग़ालिब

आदत

कुछ लोगो को होती है आदत अपनी तक़दीर बदलने की
हमको तो आदत है हवाओं का रुख-ऐ-रफ्तार बदलने की
आकर फ़िर बैठा है हमारे पहलू में कोई
कौन है ये जो कोशिश कर रहा तस्वीर बदलने की
------------------------महेश शिवा

आदत

आदत

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

चार कदम

चले जो कदम साथ मेरे
तो उससे प्यार हो जाए
थामे जो हाथ मेरे
तो अपने ही हाथ से प्यार हो जाए
जिस रात आए ख्वाबो में
उस सुहानी रात से प्यार हो जाए
जिस बात में आए जिक्र उसका
तो उस बात से प्यार हो जाए
जब थामे प्यार से हाथ मेरा
तो अपने ही हाथ से प्यार हो जाए
जब पुकारे प्यार से वो मेरा नाम
तो अपने ही नाम से प्यार हो जाए
होता है इतना खुबशुरत ये प्यार तो
काश उसे भी मुझसे प्यार हो जाए
--- प्रस्तुती---महेश शिवा

रविवार, 29 मार्च 2009

चुनावी मोसम

चुनावी मौसम में नेताओ की चल रही आंधी
किसी को याद आए दींन दयाल को आए गाँधी
कोई लोहिया को याद करे कोई दे भीम का नारा
जैसे भी हो वोट मिले दिवंगतों का मिले सहारा
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सूट बूट से धोती कुर्ते में आ गये नेताजी आज
चुनाव के समय रंग बदलते गिरगिट भी आए बाज
जनता सर हमदर्दी का यूँ कर रहे आगाज
वोट का भिखारी हूँ बना दो मुझे सरताज
_________ श्री गोपाल नारसन रुड़की

चुनाव

हाथ जोड़ विनती करूँ हे वोटर भगवान
इस बार कर दे मुझे अपनी वोट का दान
मै हूँ सेवक तेरा
तेरे पेरों की धुल भी बन गया चन्दन मेरा
तेरी नाराजगी सिर माँथे
आज काम पड़ा हे मेरा
वोट देकर मुझको बन तू महान
चुनाव बाद दुन्ड़ता फिरेगा
फ़िर तू मेरा मकान
------- श्री गोपाल नारसन

सोमवार, 9 मार्च 2009

गुलशन

खिले हैं चारों तरफ़ हुस्न के गुलशन
फ़िर भी फाखों में गुजर रही जवानी मेरी
शिवा चलना यहाँ संभल संभल कर
वक्त के कांटे ख़त्म न कर दे कहानी मेरी
--------------- महेश शिवा

मुहब्बत की शुरुआत

इस तरह मुहब्बत की शुरुआत कीजिये
एक बार अकेले में मुलाकात कीजिये।
सुखी पड़ी है दिल की जमीं मुद्दतो से यार
बनके घटायें प्यार की बरसात कीजिये।
हिलने न पाये होंठ और कह जाए बहुत कुछ
आंखों में आँखे डाल कर हर बात कीजिये।
दिन में ही मिले रोज हम देखे न कोई और
सूरज पे जुल्फे डाल कर फ़िर रात कीजिये।
-------------------प्रस्तुति- महेश शिवा

मेरी मंजिल

प्यार बनकर दिल की धड़कन में शामिल आप हैं।
देखिये दिल कह रहा है, मेरी मंजिल आप है।
दिल मे होता है उजाला आप के दीदार से।
आपको मेरे सिवा देखे न कोई प्यार से।
सबकी नजरों से छिपा लेने के काबिल आप है।
आपने नगमे दिए हैं जिंदगी के साज को।
आपसे मुझको मुहब्बत क्यों न हो, कैसे न हो।
रूह मेरी आप है, जां आप हैं, दिल आप हैं।
फ़िर सुहानी शाम, कितने रंग बिखरा के चली।
दिल की कश्ती प्यार की लहरों पे लहराती चली।
गम नहीं तूफां का मुझको, मेरे साहिल आप हैं।
-------------- प्रस्तुति- महेश शिवा

गुरुवार, 5 मार्च 2009

तुम्हे भुला न सके

ये बात और है कि हम तुमको याद आ न सके।
शराब पी के भी, लेकिन तुम्हे भुला न सके।
हरेक जाम मे उभरी है याद मांझी की।
ये कैसी आग है पानी जिसे बुझा न सके।
ग़मों के बोझ ने इतना दगा दिया हमको ।
की जब मिली हमें खुशिया तो मुस्करा न सके।
ये फासिलों की है बस्ती इसलिए यारों।
मैं पास जा न सका , वो भी पास आ सके ।
वो सांप से भी खतरनाक आदमी होगा ।
जो दिल से दिल तो मिलाये, नजर मिला न सके।
सुकून दिया है ज़माने को मेरे नगमों ने ।
अजीब बात है ख़ुद ही को हम हंसा न सके।
_____________ प्रस्तुती _ महेश शिवा

मंगलवार, 3 मार्च 2009

आग का दरिया

मुझको तुम बरखा न समझो, आग का दरिया हूँ मैं।
ये तो मज़बूरी है, अपने आप मे जलता हूँ मैं।
यूँ तो दी है मेरे खुदा ने मुझको सारी नयामते।
एक तुम्हारे तब्बसुम के लिए तरसा हूँ मैं।
तुम किसी बात का हरगिज न बुरा मानना।
जो भी कहता हूँ आदतन कहता हूँ मैं।
हाल ऐ दिल क्यों पूछते हैं लोग मुझसे बार बार ।
कह चुका हूँ , अच्छे अच्छो से बहुत अच्छा हूँ मैं।
दोस्तों की दुशमनी और दुश्मनों की दोस्ती।
जाने किस किस मोड़ से कैसे निकला हूँ मैं।
--------------प्रस्तुति महेश शिवा

रविवार, 1 मार्च 2009

deewangi

किए जाओ नफरत का इजहार हंसकर
कभी तो करोगे हमे प्यार हंसकर
ये मखसूस दीवानगी है हमारी
कई बार रोये, कई बार हंसकर
हमीं हैं तुम्हारे तब्बसुम के मालिक
कहीं और देखा ख़बरदार हंसकर
तुम्ही ने बनाया, तुम्ही ने बिगाडा
किसी दिन तो करलो, ये इकरार हंसकर
इसे भी मुसीबत का अहसान समझो
मुसीबत मिली तो हर बार हंसकर
किसी में थी हिम्मत कहाँ लुटने की
हमीं ने लुटाया घरबार हंसकर
----- प्रस्तुती --- महेश शिवा

Nakam

दर्द बयां करने में शब्दों ने पाया ख़ुद को नाकाम
तेरा बड़प्पन नहीं दर्द ये शब्दों की मर्यादा है
वो पीने के बाद बहकता है सबको मालूम खूब है
लेकिन भुला नहीं अपने घर का दरवाजा
----------------एस मिश्रा हरिद्वार

shabad

हाँ शब्द झूठे है सभी सत्ये कथाओ की तरह
वक्त बेशर्म है वैशाओ की अदाओ की तरह
जाने किस का था साया जिसे छूने को
हम भटकते रहे आवारा हवाओ की तरह
प्यार के वास्ते बरसो तरसा है ये दिल
अब तो बरसो कोई सावन की घटाओ की तरह
----- महेश शिवा

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

gazal

ये बात और है की इन्सान बनकर आया है
मगर वो शख्स जमीन पर खुदा का साया है
निगाह मे तुम उसको क्यों ढूंढ़ते हो
नज़र नही वो मेरी रूह में समाया है

शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

gazal

प्यार बनकर दिल की हर धड़कन में शामिल आप हैं
देखिये दिल कह रहा है मेरी मंजिल आप हैं
ग़म नहीं तूफान का मुझको मेरे साहिल आप हैं