गुरुवार, 5 मार्च 2009

तुम्हे भुला न सके

ये बात और है कि हम तुमको याद आ न सके।
शराब पी के भी, लेकिन तुम्हे भुला न सके।
हरेक जाम मे उभरी है याद मांझी की।
ये कैसी आग है पानी जिसे बुझा न सके।
ग़मों के बोझ ने इतना दगा दिया हमको ।
की जब मिली हमें खुशिया तो मुस्करा न सके।
ये फासिलों की है बस्ती इसलिए यारों।
मैं पास जा न सका , वो भी पास आ सके ।
वो सांप से भी खतरनाक आदमी होगा ।
जो दिल से दिल तो मिलाये, नजर मिला न सके।
सुकून दिया है ज़माने को मेरे नगमों ने ।
अजीब बात है ख़ुद ही को हम हंसा न सके।
_____________ प्रस्तुती _ महेश शिवा

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