KAALAMITA
hamesha
सोमवार, 9 मार्च 2009
गुलशन
खिले हैं चारों तरफ़ हुस्न के गुलशन
फ़िर भी फाखों में गुजर रही जवानी मेरी
शिवा चलना यहाँ संभल संभल कर
वक्त के कांटे ख़त्म न कर दे कहानी मेरी
--------------- महेश शिवा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें