KAALAMITA
hamesha
रविवार, 1 मार्च 2009
Nakam
दर्द बयां करने में शब्दों ने पाया ख़ुद को नाकाम
तेरा बड़प्पन नहीं दर्द ये शब्दों की मर्यादा है
वो पीने के बाद बहकता है सबको मालूम खूब है
लेकिन भुला नहीं अपने घर का दरवाजा
----------------एस मिश्रा हरिद्वार
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