मंगलवार, 3 मार्च 2009

आग का दरिया

मुझको तुम बरखा न समझो, आग का दरिया हूँ मैं।
ये तो मज़बूरी है, अपने आप मे जलता हूँ मैं।
यूँ तो दी है मेरे खुदा ने मुझको सारी नयामते।
एक तुम्हारे तब्बसुम के लिए तरसा हूँ मैं।
तुम किसी बात का हरगिज न बुरा मानना।
जो भी कहता हूँ आदतन कहता हूँ मैं।
हाल ऐ दिल क्यों पूछते हैं लोग मुझसे बार बार ।
कह चुका हूँ , अच्छे अच्छो से बहुत अच्छा हूँ मैं।
दोस्तों की दुशमनी और दुश्मनों की दोस्ती।
जाने किस किस मोड़ से कैसे निकला हूँ मैं।
--------------प्रस्तुति महेश शिवा

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