महेश शिवा
भारत पर कई सदियों तक राज करने वाले अंग्रेजी शासन से भले ही वर्ष 1947 में देशवासियों ने निजात पा ली हो, लेकिन मलेरिया के खिलाफ लड़ी जा रही जंग में हम अवही भी बहुत पीछे हैं। 1947 में एक ओर जहां देशवासी आजादी का जश्न मना रहे थे, वहीं 8 लाख लोग ऐसे भी थे, जो मलेरिया का शिकार हुए थे।
देश में मलेरिया रोग का इतिहास काफी पुराना है। आजादी के 64 साल बाद मलेरिया के प्रकोप से पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका। हर साल लाखों लोग इस रोग की चपेट में आ रहे हैं तो प्रति वर्ष हजारों लोग इस बीमारी की चपेट में आकर मौत का शिकार हो रहे हैं। राष्टीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के जिला प्रबंधक खालिद अहमद बताते हैं कि देश का शायद ही कोई कोना ऐसा बचा हो, जिसमें मलेरिया रोग का प्रकोप नहीं है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां मलेरिया लोगों को अपनी गिरफ्त में लेता है तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में फाइलेरिया लोगों को जकड़ता है।
मलेरिया के इतिहास पर नजर डाले तो पता चलता है कि 1947 में आठ लाख लोगों की मौत इस रोग के कारण हुई। एक साल में इतने लोगों की मौत होने पर सरकार द्वारा मलेरिया रोधी अभियान शुरु किया गया, जिसका असर यह हुआ कि कई सालों तक देश में कोई मौत मलेरिया से नहीं हो सकी। 1976 से फिर से प्रकोप बरसना शुरु हो गया। इस साल 59 लोगों की मौत मलेरिया से हुई। 1984 में 247, 1985 में 213, 1986 में 323, 1987 में 188, 88 में 209, 89 में 268, 1990 में 353, 91 में 421, 92 में 422, 93 में 354, 94 में 1122, 95 में 1151, 96 में 1010, 97 में 879, 98 में 664, 99 में 1048 मौत हुई। वर्ष 2000 में 932, 01 में 1005, 02 में 973, 03 में 1006, 04 में 949, 05 में 963, 06 में 1707, 08 में 1055, 09 में 1144 तथा 2010 में 1023 लोगों की मौत मलेरिया के चलते हो चुकी है।
बुधवार, 26 अक्तूबर 2011
1947 में देश भर में मलेरिया से मरे थे आठ लाख लोग
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें