शनिवार, 5 नवंबर 2011

ताकि न फै ले मलेरिया का प्रकोप

महेश शिवा

पूरे वर्ष अलग-अलग समय पर बीमारियों का क्रम जारी रहता है। यह भी कहा जा सकता है कि बीमारियां मौसम बदलने का पूरे वर्ष इंतजार करती है और जैसे ही मौसम बदलता है कि ये मनुष्य को अपनी चपेट में ले लेती हैं। आदमी भी इनसे बचने के लिए पहले सही उपयुक्त उपाय नहीं करता।

वास्तव में हम सभी कुछ बीमारियों को तो न्योता देकर बुलाते हैं। हमें मौसम के अनुरुप ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। मौसम के अनुरुप ही खाने पीने की वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। मच्छर एक ऐसा जीव है, जो यूं तो साल भर पाया जाता रहता है, लेकिन जुलाई से नवंबर माह तक यह जीव मनुष्य को डंक मारता रहता है। मच्छर के काटने से डेंगू, दिमागी बुखार और मलेरिया जैसे घातक रोग होते हैं। मलेरिया जुलाई से नवंबर के बीच फैलने वाली एक ऐसी बीमारी है, जिसका निदान सही ढंग से किया जाए तो अकसर रोगी असमय ही मृत्यु का शिकार हो जाता है। मलेरिया के बारे में यदि हम सभी को सही जानकारी हो तो इससे काफी हद तक बचा जा सकता है। इन दिनों पूरे देश में मलेरिया अपना प्रकाप फैला रहा है। करीब पांच लाख से अधिक व्यक्ति मलेरिया रोग की चपेट में चुके हैं। इन दिनों ओड़िसा में मलेरिया के सर्वाधिक रोगी पाए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाकों में भी मलेरिया का मच्छर डंक मार रहा है।

कैसे फैलता है मलेरिया

मलेरिया एक विशेष प्रकार के मच्छर के काटने से फैलता है, जिसको एनाफ्लीज के नाम से जाना जाता है। मच्छर की लार एक परजीवी होता है, जो मनुष्य के शरीर में जाकर मलेरिया का कारण बनता है। मौसम बदलने पर यानि जुलाई से नवंबर तक मच्छरों की संख्या बढ़ जाती है। मौसम के कुछ विशेष परिस्थितियों में परजीवी तथा मच्छर, दोनों की उम्र भी बढ़ जाती है। मादा एनाफ्लीज नामक मच्छर में पाए जाने वाले परजीवी को प्लाज्मोडियम के नाम से जाना जाता है। वैसे तो परजीवियों की संख्या 100 ये अधिक है, जो विभिन्न प्रकार के पशु पक्षियों में पाए जाते हैं, लेकिन उनके काटने से हमारे शरीर पर मलेरिया का आघात नहीं होता है। कुछ परजीवी बंदर, घोड़ों हाथियों आदि जानवरों में पाए जाते हैं। मलेरिया केवल चार प्रकार के परजीवियों के शरीर के अंदर ही होता है और ये परजीवी मच्छर द्वारा ही शरीर में जाते हैं तथा रक्त में मिल जाते हैं।

मादा एनाफ्लीज नामक मच्छर जब मनुष्य पर अपना हमला करता है तो उसकी लार में मौजूद परजीवी मानव शरीर के भीतर प्रवेश करते हैं। मानव शरीर में बुखार फैलाने वाले इस प्रकार के चार परजीवी होते हैं, जिन्हे प्लाज्मोडियम मलेरी, ओवेल, वायवैक्स तथा फैल्सीपैरम कहा जाता है। ये परजीवी शरीर में पहुंचने पर तुरंत अपना परभाव नहीं दिखाते, बल्कि धीरे-धीरे शरीर में जिगर की कोशिकाओं में मजबूती से पकड़ बनाते हैं और अधिक संख्या में होने पर खून के साथ संचरण करने लगते हैं। हमारा रक्त दो प्रकार की कणिकाओं से मिलकर बना होता है, जिनको लाल रक्त कणिका तथा श्वेत रक्त कणिका कहा जाता है।यह परजीवी खून में मिल जाता है तो लाल कणिकाओं को नष्ट करने लगता है, जिसका मुख्य कारण मलेरिया होता है।

परजीवी मच्छर की लार से निकलकर मनुष्य में जाता है, अर्थात पहले परजीवी मच्डर के शरीर में चला जाता है और फिर मच्छर आदमी के शरीर से रक्त चूसता है तो वह परजीवी को भी अपने पेट में ले जाता है। परजीवी मनुष्य को मलेरिया का शिकार बनाकर खुदाी मच्छर का शिकार हो जाता है। इस प्रकार परजीवी का जीवन चक्र इस मादा मच्छर से शुरु होता है और उसी में समाप्त हो जाता है।

वैसे तो पूरे साल में कभी कभी आपको मच्छर देखने को मिल जाएंगे, लेकिन जब वायु में थोड़ी नमी होती है, तापमान साधारण रहता है, वर्षा होती है, जगह-जगह पानी भरा रहता है, तब मादा मच्छर अंडे देने के लिए व्याकुल रहती है। ऐसा भी निश्चित नहीं कि इन दिनों में ही मलेरिया होगा। जब कभी हभी इसका परजीवी शरीर में जाएगा, मलेरिया का कारण बनेगा।

लक्षण

प्लाज्मोडियम नामक परजीवी जब रक्त कणिकाओं में मिल जाता है तो लाल रक्त कणिकाओं को नष्ट कर देता है, जिससे शरीर में बुखार आता है। मलेरिया का सबसे पहला लक्षण तो बुखार ही है। यह जरुरी नहीं होता कि बुखार का कारण यही परजीवी हो। इसको कुछ विशेष प्रकार के लक्षणों से ही जाना जाता है। प्रारम्भिक अवस्था में सिर में हलका दर्द होता या सिर में भारीपन महसूस होता है और तेज ठंड लगती है। उस समय यदि रोगी को कंबल में भी लपेट दिया जाए तो उसे ठंड लगती रहती है, लेकिन ठंड कुछ देर तक ही लगती है। कभी कभी तो कंपकंपी बंध जाती है। कुछ समय के बाद तकरीबन एक या दो घंटे बाद ठंड लगना कम हो जाती है और रोगी का जी मिचलाता है। किसी किसी को तो उल्टी भी हो जाती है, लेकिन सिर का भारीपन समाप्त नहीं होता। रोगी से पूछने पर उसका जवाब आता है कि सिर फटा जा रहा है। चक्कर रहे हैं। इसके बाद रोगी को अचानक गरमी महसूस होने लगती है। इतनी गरमी लगती है कि शरीर से पसीने छूटने लगते हैं। ऐसी अवस्था में शरीर का तापमान कुछ कम हो जाता है, लेकिन रोगी अत्यंत कमजोरी महसूस करता है, जिसके कारण रोगी को नींद जाती है। सर्दी लगने और पसीने आने का क्रम जारी रहता है। ऐसी अवस्था में समझना चाहिए कि रोगी में मलेरिया के लक्षण हैं, जो परजीवी के कारण हुआ है। किसी किसी रोगी में देखा गया है कि उसे ज्यादा ठंड नहीं लगती, लेकिन तापमान सामान्य होने पर भी वह सर्दी महसूस करता है और बुखार का क्रम जारी रहता है यानि शरीर का तापमान कम नहीं होता। इसका कारण यह है कि रोगी के शरीर में वे क्रियाएं इतनी जल्दी होती हैं, जिससे ये लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इसके अलावा रोगी की अवस्था में परिवर्तन परजीवी पर भी निर्भर करती है। क्योंकि मनुष्य में मलेरिया फैलाने वाले चार प्रकार के परजीवी होते हैं। मलेरिया की पहली अवस्था को पहचानना थोड़ा मुश्किल होता है, जब फैल्सीफैरम नामक परजीवी से हुआ हो, क्योंकि इस प्रकार के बुखार में भी लक्षण सामान्य होते हैं। तो रोगी को तेज सर्दी लगती है और नही जोर से पसीना आता है।

अधिकांश मलेरिया तब होता है, जब मौसम तो ज्यादा गरम होता है और ही ज्यादा ठंडा यानि तापमान साधारणत: 25 से 35 डिग्री के बीच रहता है। हवा में आद्रता भी बनी रहती है और मच्छरों की भी भरमार होती है। एक बात ध्यान में जरुर रखें कि प्रत्येक मच्छर एनाफ्लीज नहीं होता। कुछ टाइगर मच्छर भी होते हैं, जिनसे डेंगू फैलता है। इसलिए बुखार आने पर रक्त की जांच अवश्य कराई जानी चाहिए। कभी कभी मलेरिया के सभी लक्षण रोगी में दिखाई देते हैं और वह साधारण बुखार की दवाईयों का ही सेवन करता है। जिससे शरीर का तापमान तो कम हो जाता है, लेकिन शरीर में मौजूद परजीवी नहीं मर पाते, जिससे रोगी की हालत बिगड़ती जाती है, यदि मलेरिया का कोई लक्षण दिखाई दे तो खून की जांच करवाना आवश्यक है। इस प्रकार रोगी के बुखार के कारण का पता लगाया जा सकता है।

मलेरिया का शरीर पर प्रभाव

मलेरिया होने पर शरीर में सबसे पहले प्रभाव रक्त पर पड़ता है, क्योंकि रक्त के लाल कणों के नष्ट होने पर ही बुखार आता है। शरीर में जब परजीवी ज्यादा संख्या में होते है तो वे अपना प्रभाव एक समूह के रुप में मस्तिष्क, गुर्दों, जिगर आंतों पर डालते हैं। कभी कभी इनका इतना भयंकर प्रभाव होता है कि रोगी को मृत्यु का सामना भी करना पड़ जाता है। मलेरिया के ये परजीवी मच्छर द्वारा शरीर के अंदर जाते हैं और रक्त में मिल जाते हैं। रक्त के संचरण के साथ मनुष्य के जिगर तक जा पहुंचते हैं। वैसे तो जिगर का कार्य विषैले पदार्थ को विषमुक्त कर शरीर को स्वस्थ रखना है, परंतु परजीवी के लिए जिगर घर की तरह कार्य करता है। जिगर दो बडेÞ पिंडों में बना होता है, जिनको लोब्स कहा जाता है। इन पिंडों में भी छोटे-छोटे पिंड होते हैं। ये छोटे पिंड विशेष प्रकार की लाखों कोशिकाओं से बने होते हैं। परजीवी इन्ही कोशिकाओं में पलता है,जिगर में ही ये परजीवी अधिक सक्रिय हो जाते हैं और फिर लाल रक्त कणिकाओं में प्रवेश करते हैं, जिससे लाल रक्त कणिकाएं टूटती हैं और मनुष्य मलेरिया का शिकार होता है। मलेरिया का प्रभाव दिमाग पर भी पड़ता है। दिमाग शरीर में हवा और रक्त का संतुलन रखता है, लेकिन जब रक्त में लाल कणों की संख्या कम हो जाती है तो कभी कभी मस्तिष्क अपना संतुलन खोल बैठता है। ऐसी स्थिति हमेशा नहीं होती, लेकिन मलेरिया होने पर इस बन जाती है। इसी प्रकार मलेरिया के परजीवी आंतों और गुर्दों पर भी अपना प्रभाव छोड़ते हैं और इसकी सजा शरीर के सभी अंगों को भुगतनी पड़ती है। मलेरिया बुखार की दवा काफी गरम होती है, इसलिए मलेरिया बुखार की दवाओं का सेवन दूध से करना चाहिए।

बचने के उपाय

= कूलर की टंकी को सप्ताह में एक बार अवश्य साफ करें, दुबारा पानीारने से पहले टंकी अच्छी तरह सुखा लें। जहां पर कूलर की टंकी साफ करना संाव हो, वहां कू लर में एक चम्मच डीजल, पेट्रोल या मिट्टी का तेल नियमित रुप से डाले।

= घर एवं आसपास पानी एकत्रित होने दें।

= घरों की नियमित रुप से सफाई करें और जिन स्थान पर हाथ जा सकता हो, वहां छिपे मच्छरों को मारने के लिए कीटनाशक का प्रयोग करें। आज बाजार में हिट, मोर्टिन आदि कई प्रकार के ब्रांडेट कीटनाशक स्पे्र मशीन समेत उपलब्ध हैं, जो एक सौ रुपये तक आसानी से मिल जाते हैं।

= रुके हुए पानी के स्थानों को मिट्टी से भर दें। यह यह संभव हो तो कुछ बूंद मिट्टी तेल उसमें डाल दें।

= सोते समय मच्छरदानी अथवा मच्छर भगाने की क्रीम का प्रयोग करें।

दैनिक कार्य के लिए पानी एकत्रित करने वाले बर्तनों तथा पानी की टंकी ढक कर रखे तथा एक सप्ताह से ज्यादा दिन तक पानी एकत्रित होने दे।

= जहां तक संभव हो सके पूरी आसतीन की शर्ट तथा जुराब का प्रयोग करें, ताकि मच्छर के काटने से बचा जा सके।

= तेज बुखार पर चिकित्सक से संपर्क करें। डेंगू, मलेरिया का शक होने पर नजदीक के अस्पताल मेंार्ती हो जाएं।

= मकान की छतों पर पडेÞ टूटे प्लास्टिक मिट्टी के बर्तन, डिब्बे टायर आदि सामान हटा दें।

= माह सितंबर से दिसंबर तक बच्चों को शाम के समय खेत, जंगल में जाने दें।

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