रविवार, 27 नवंबर 2011

KAALAMITA: नियमित टीकाकरण में शामिल हुआ हेपेटाइटिस बी

नियमित टीकाकरण में शामिल हुआ हेपेटाइटिस बी

हेपेटाइटिस के चलते होने वाले रोगों से बच्चों को बचाने के लिए हेपेटाइटिस बी के इंजेक्शन को अब नियमित टीकाकरण में शामिल कर लिया गया है। अब सरकारी अस्पताल में बच्चे के जन्म लेने के 24 घंटे के भीतर ही हेपेटाइटिस बी के इंजेक्शन को लगाया जाएगा। इसके अलावा नियमित रुप से चलने वाले टीकाकरण कार्यक्रम के तहत भी बच्चों को निशुल्क यह टीका लगाया जाएगा।
केंद्र और राज्य सरकार के नियमित टीकाकरण में अभी तक हेपेटाइटिस बी के इंजेक्शन लगाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। इस रोग से बचने के लिए केवल प्राइवेट चिकित्सकों द्वारा ही यह टीका लगाया जाता रहा है। कुछ स्वैच्छिक संगठनों द्वारा समय समय पर शिविर लगाकर रियायती दरों पर हेपेटाइटिस का टीका लगाया जाता था। हेपेटाइटिस का यदि समय रहते उपचार न किया जाए तो यह आगे चल कर कैंसर आफ लीवर तथा सियोयसिस जैसे खतरनाक रोगों को जन्म दे सकता है। हेपेटाइटिस के चलते क्रोनिक इंफैक्शन भी हो जाता है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की ओर से हेपेटाइटिस को नियमित टीकाकरण में शामिल किए जाने का प्रस्ताव और मांग की जाती रही है। राज्य सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए अब हेपेटाइटिस को नियमित टीकारण में शामिल करने का निर्णय लिया है। आगामी दिसंबर माह से होने वाले टीकाकरण कार्यक्रम मे तहत अब बच्चों को यह टीका अनिवार्य रुप से लगाया जाएगा। सरकारी अस्पतालों में डिलीवरी के बाद पैदा हुए बच्चे को 24 घंटे के भीतर तर डीपीटी की डोज के साथ यह टीका लगाया जाएगा।
जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डा. आरके गुप्ता ने बताया कि जिले के जिला महिला चिकित्सालय, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र देवबंद एवं फतेहपुर में ही फिलहाल इस टीके को लगाने की व्यवस्था की गई है। उन्होंने बताया कि बच्चे की जांघ के अगले भाग में टीका लगाया जाएगा। हेपेटाइटिस का टीका लगाने के लिए चिकित्सकों को प्रशिक्षित किया जा चुका है, दिसंबर माह से इस पर कार्य प्रारंभ हो जाएगा।

परधन

जितने हरामखोर थे कुर्बो ज्वार में
प्रधान बनके आ गये अगली कतार में
--- अदम्ब गोंडवी

शनिवार, 26 नवंबर 2011

नियमित टीकाकरण में शामिल हुआ हेपेटाइटिस बी

हेपेटाइटिस के चलते होने वाले रोगों से बच्चों को बचाने के लिए हेपेटाइटिस बी के इंजेक्शन को अब नियमित टीकाकरण में शामिल कर लिया गया है। अब सरकारी अस्पताल में बच्चे के जन्म लेने के 24 घंटे के भीतर ही हेपेटाइटिस बी के इंजेक्शन को लगाया जाएगा। इसके अलावा नियमित रुप से चलने वाले टीकाकरण कार्यक्रम के तहत भी बच्चों को निशुल्क यह टीका लगाया जाएगा।
केंद्र और राज्य सरकार के नियमित टीकाकरण में अभी तक हेपेटाइटिस बी के इंजेक्शन लगाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। इस रोग से बचने के लिए केवल प्राइवेट चिकित्सकों द्वारा ही यह टीका लगाया जाता रहा है। कुछ स्वैच्छिक संगठनों द्वारा समय समय पर शिविर लगाकर रियायती दरों पर हेपेटाइटिस का टीका लगाया जाता था। हेपेटाइटिस का यदि समय रहते उपचार न किया जाए तो यह आगे चल कर कैंसर आफ लीवर तथा सियोयसिस जैसे खतरनाक रोगों को जन्म दे सकता है। हेपेटाइटिस के चलते क्रोनिक इंफैक्शन भी हो जाता है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की ओर से हेपेटाइटिस को नियमित टीकाकरण में शामिल किए जाने का प्रस्ताव और मांग की जाती रही है। राज्य सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए अब हेपेटाइटिस को नियमित टीकारण में शामिल करने का निर्णय लिया है। आगामी दिसंबर माह से होने वाले टीकाकरण कार्यक्रम मे तहत अब बच्चों को यह टीका अनिवार्य रुप से लगाया जाएगा। सरकारी अस्पतालों में डिलीवरी के बाद पैदा हुए बच्चे को 24 घंटे के भीतर तर डीपीटी की डोज के साथ यह टीका लगाया जाएगा।
जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डा. आरके गुप्ता ने बताया कि जिले के जिला महिला चिकित्सालय, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र देवबंद एवं फतेहपुर में ही फिलहाल इस टीके को लगाने की व्यवस्था की गई है। उन्होंने बताया कि बच्चे की जांघ के अगले भाग में टीका लगाया जाएगा। हेपेटाइटिस का टीका लगाने के लिए चिकित्सकों को प्रशिक्षित किया जा चुका है, दिसंबर माह से इस पर कार्य प्रारंभ हो जाएगा।

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

बिना हाथों के जन्मा बच्चा



कुदरत के करिश्मे के आगे इंसानी ताकत पूरी तरह बौनी होती है। कुदरत के करिश्मे की बानगी गांव गंझेडी में देखने को मिली। इस गांव में एक महिला ने एक ऐसे बच्चे को जन्म दिया है, जिसके दोनों हाथ गायब है। बीस दिन की आयु पार कर चुका यह नवजात पूरी तरह से स्वस्थ्य है।

उत्तर प्रदेश के जनपद सहारनपुर के गांव गंझेड़ी निवासी साजिद अली पुत्र कालू का निकाह करीब एक साल पहले हीना परवीन से हुआ था। विगत 21 अक्टूबर को हीना को मां बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। एक निजी नर्सिंग होम में हीना ने एक बच्चे को जन्म दिया तो परिवार की खुशी का ठिकाना रहा। परिवार का हर सदस्य बेटा पैदा होने पर खुशी में मस्त था, लेकिन परिवार के हर उस सदस्य को उस वक्त झटका लगा जब बच्चे को देखा गया। इस बच्चे के दोनों हाथ नहीं है। बच्चे का पिता साजिद मजदूरी करता है। उसने बताया कि बच्चा करीब 20 दिन का हो गया है। प्रसव भी नार्मल हुआ। बच्चे का वजन भी आम बच्चों की तरह सामान्य है। साजिद ने बताया कि बच्चे की सभी हरकत आम बच्चों की तरह है। जो रोता भी है और हंसता भी बच्चा अपनी मां का दूध सेवन कर रहा है और काफी तंदुरुस्त भी है। बच्चे का नाम मोहम्मद अर्श रखा गया है। साजिद अली ने बताया कि सातवें महीने में स्केनिंग करायी गई थी तब भी बच्चे के बारे में ऐसा कुछ नहीं बताया गया था। गरीबी के चलते किसी डाक्टर के पास नहीं लेकर गये।

बिना हाथ वाले इस बच्चे को लेकर चिकित्सक भी हैरत में हैं। सहारनपुर जिला महिला चिकित्सालय की सीएमएस डा. पदमिनी जोशी बताती है कि अधिकांश केसों में बच्चे का सिर बनने या ज्यादा बड़े होते हैं। वह बताती है कि गर्भ धारण के पहले तीन माह के दौरान गर्भ निरोधक दवाईयों या अन्य प्रकार की दवाई का ज्यादा मात्रा में प्रयोग करने से भ्रूण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पहले तीन माह तक भ्रूण के अंग भी बनना प्रारं नहीं होते हैं, इस दौरान यदि बिना चिकित्सक की सलाह पर दवाई का सेवन कर लिया जाए तो उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। डा. जोशी ने बताया कि यह मामला जेनेटिक भी हो सकता है।

बुधवार, 9 नवंबर 2011

फसलों को रखे वातानुकूलित


महेश शिवा

एक ओर जहां फल और सब्जियों की खेती के लिए किसानों द्वारा विभिन्न तकनीकों को अपनाया जा रहा है, वहीं किसान भाई पॉली हाऊस के माध्यम से बे मौसमी फूल और सब्जियों की खेती कर अपनी आर्थिकी को सुधार सकते हैं। पॉली हाऊस के निर्माण के लिए राज्य और केंद्र सरकार द्वारा पचास प्रतिशत का अनुदान दिया जा रहा है।

अभी तक हिमाचल प्रदेश,उत्तराखंड आदि प्रदेशों में ही किसान पॉली हाऊस को फूल और सब्जियों की खेती के लिए प्रयोग करते रहे हैं। इन प्रदेशों में मिल रहे लाभ के बाद उत्तर प्रदेश में भी धीरे धीरे इसका क्रेज बढ़ रहा है। पॉली हाऊस का निर्माण काफी महंगा होने के कारण साधारण किसान अभी भी इससे जी चुराते हैं, लेकिन यह है बडे फायदे का सौदा। किसान भाई पॉली हाऊस या ग्रीन हाऊस के माध्यम से उन सब्जियों और फूलों की खेती कर सकते हैं, जिनकी सामान्य तौर पर सीजन में ही की जाती है। संक्रर प्रजाति के बीजों का प्रयोग पॉली हाऊस की खेती के लिए फायदेमंद रहता है। सामान्य उत्पादन से दुगना उत्पादन पॉली हाऊॅस में होता है।

पॉली हाऊस के माध्यम से की गई खेती को संरक्षित खेती भी कहा जा सकता है। संरक्षित खेती का भीप्राय सब्जियों, फूलों और औद्यानिक फसलों को तापक्रम, धूप, बारिश तथा अन्य विषम परिस्थितियों से बचाना है। पॉली हाऊस में सब्जियों और पुष्पों की खेती की असीम संभावनाएं हैं। पॉली हाऊस में तापक्रम को नियंत्रित कर प्रतिकूल मौसम में सब्जी फूलों का उत्पादन किया जा सकता है। संकर प्रजाति के महंगे बीजों की पौध तैयार करने में कम कीमत में निर्मित पॉली हाऊस काफी प्रचलित हो रहे हैं। टनल पाइप पॉली हाऊस में सर्दी के मौसम में टमाटर, शिमला मिर्च, करेला, खीरा तथा फूलों में जरबेरा, गुलाब, ग्लोडियरस आदि की खेती आसानी से की जा सकती है। इसके अलावा आफ सीजन फूलों और सब्जियों के बीज भी पोली हाऊस के माध्यम से तैयार किए जा सकते हैं। संरक्षित खेती के अंतर्गत पॉली हाऊस, प्लास्टिक टनल, शेडनेट की स्थापना को सरकार द्वारा प्रोत्साहन दिए जाने की व्यवस्था है।

कैसे तैयार करें पॉली हाऊस

पॉली हाऊस (ट्यूबलर स्ट्रक्चर) को साधारण जीआई पाइप के ढांचे के ऊपर अल्ट्रावायलेट स्टेबिलाइज्ड पालीथिन फिल्म 800 गेज की शीट से बनाया जाता है। ऐसे पाली हाऊस में वायु संचारण तथा तापक्रम नियंत्रण के लिए किसी प्रकार के विद्युत संचालित मशीन का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार के हाऊस में सर्दी के मौसम में खीरा, लौकी, शिमला मिर्च और टमाटर आदि की सब्जियों को उगाने के लिए काफी उपयुक्त होते हैं। पॉली हाऊस का स्ट्रक्चर ऐसा होना चाहिए कि वह हवा में गिर पाए। इस हाऊस को तैयार करने के लिए पूसा इंस्टीट्यूट दिल्ली के वैज्ञानिक किसानों की सहायता करते हैं। पूजा इंस्टीट्यूट दिल्ली से संपर्क कर पॉली हाऊस के स्ट्रक्चर का नमूना प्राप्त किया जा सकता है।

पाली हाऊस निर्माण के लिए सरकारी सहायता

पॉली हाऊस के तहत संरक्षित खेती कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा काफी बढ़ावा दिया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में राज्य औद्यानिक मिशन के तहत प्रत्येक जिले के जिला उद्यान अधिकारी को पाली हाऊस निर्माण का लक्ष्य दिया गया है। इस साल सर्वाधिक लक्ष्य सहारनपुर जनपद को दिया गया है। इस जिले में 4000 वर्ग फीट में पॉली हाऊस निर्माण होने हैं। इसी प्रकार अन्य जिलों के लिए भी अलग अलग लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 1000 वर्ग फीट के पॉली हाऊस निर्माण पर 9 लाख 35 हजार का खर्च आता है, जिसमें से पचास प्रतिशत अनुदान राज्य औद्यानिक मिशन के तहत किसान को प्रदान किया जाता है। इसके अलावा नेशनल हार्टिकल्चर बोर्ड बडौत द्वारा भी 25 प्रतिशत तक अनुदान दिए जाने का प्रावधान है। लेकिन इस बोर्ड से अनुदान प्राप्त करने के लिए किसान को बैंक से ऋण स्वीकृत कराना होगा। स्वीकृत ऋण पर ही 25 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है।

संरक्षित होती है पॉली हाऊस की खेती

जिला उद्यान विभाग के वरिष्ठ उद्यान निरीक्षक अरुण कुमार बताते हैं कि पॉली हाऊस के माध्यम से आफ सीजन सब्जियों और फूलों का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है। सर्दी में पाला पड़ने और ओलावृष्टि का असर पॉली हाऊस की खेती पर नहीं होता है। इसके अलावा यह कई अन्य मायनों में भी फायदेमंद रहता है। इस हाऊस में महंगे बीजों का उत्पादन कर किसान बाजार में बिक्री कर अपनी आर्थिकी सुधार सकते हैं। प्रदेश सरकार द्वारा पॉली हाऊस के निर्माण पर आने वाली कुल लागत में से आधा खर्च वहन किया जाता है।



सोमवार, 7 नवंबर 2011

असुविधाओं के बीच सिमट रहा है हैंडीक्राफ्ट



प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये की विदेशी मुद्रा अर्जित करने के साथ विश्व स्तर पर बेहट की पहचान कराने वाला आयरन हैंडीक्राफ्ट सरकारी उपेक्षा एवं कच्चे माल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि के कारण सिमटता जा रहा है। दूसरी ओर, चीनी उत्पादों का बाजार में सस्ते उपलब्ध होने के कारण भी यह उद्योग बंदी के कगार पर पहुंच रहा है। जिसके चलते क्षेत्र के आयरन हैंडीक्राफ्ट का कार्य करने वाले उद्यमियों, कारीगरों व मजदूरों के समक्ष रोजी रोटी का संकट उत्पन्न हो रहा है। इस हालात में वह दिन दूर नहीं जब स्थानीय कारीगर आयरन हैंडीक्राफ्ट बनाने की कला ही भूल जायेंगे।
तीन दशक पूर्व क्षेत्र के गांव भूलनी में यह उद्योग घंटी उद्योग के नाम से शुरू हुआ था। जिसने धीरे-धीरे क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बना ली। उस समय लगभग 300 छोटे-बडे कारखानों में यह उद्योग धंधा चलने लगा। शुरूआती दौर में मेलों में अपनी पहचान बनाने वाले इस उद्योग ने देश के बड़े शहरों तक अपनी पैठ बनाई। जिससे प्रभावित होकर दिल्ली-मुंबई आदि के निर्यातकों ने बेहट की ओर रूख किया। जिस पर बाद में यह उद्योग आयरन हैंडीक्राफ्ट के नाम से जाना गया। इस उद्योग से जहां व्यापक पैमाने पर क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिला, वहीं बेहट ने विश्व स्तर पर अपनी कला की पहचान बनाई। उस समय निर्यातकों ने विदेशी बाजारों में सैंपल ले जाने के बाद आर्डर पर माल तैयार कर मोटी कमाई की। हालांकि कुछ समय बाद यहां के कुछ उद्यमियों ने लाइसेंस हासिल कर बेहट से सीधे निर्यात शुरू कर दिया। यहां के कारीगरों द्वारा निर्मित किये गये हैंडीक्राफ्ट को इंडोनेशिया, अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों में विशेष दर्जा मिलता था, लेकिन सरकारी मदद न मिल पाने कारण इस उद्योग की कमर लगातार टूटती जा रही है और क्षेत्र में यह उद्योग सिमटता जा रहा है। क्षेत्र में विद्युत व्यवस्था चरमराने से भी इस उद्योग पर संकट के बादल छा रहे हैं।
आयरन हैंडीक्राफ्ट से जुडे उद्यमी अतीक अहमद, हाजी इसरार, मिर्जा अबरार आदि का कहना है कि कच्चा माल उपलब्ध न होने व सुविधाओं के अभाव में यह उद्योग बंदी के कगार पर पहुंच रहा है। इस उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए कस्बे में बायर भवन स्थापित किये जाने, सीधे बायर बुलाने एवं आसानी से कच्चा माल उपलब्ध कराने की कई बार मांग कर चुके हैं लेकिन आज तक इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। दूसरी ओर, चीन द्वारा आयरन हैंडीक्राफ्ट के क्षेत्र में उतर जाने के कारण भी यहां के आयरन उद्योग को झटका लगा हैं क्योंकि चीन में कच्चा माल सस्ता होने के साथ लेवर भी सस्ते दामों में आसानी से उपलब्ध हो जाती है। इतना ही नहीं दिल्ली, जयपुर, मुरादाबाद, चंडीगढ़ आदि के सप्लायरों ने बेहट की तर्ज पर अपने आयरन हैंडीक्राफ्ट कारखाने खोलकर सीधे अमेरिका, फ्रांस पुर्तगाल, कनाडा, जार्डन, इंग्लैड आदि देशों कों को निर्यात करना प्रारम्भ कर दिया है। जिसके कारण भी बेहट का आयरन उद्योग पिछडता जा रहा है। जिससे क्षेत्र के सैकड़ों उद्यमी एवं हजारों कारीगरों के सामने रोजी-रोटी का संकट बन गया है।

शनिवार, 5 नवंबर 2011

ताकि न फै ले मलेरिया का प्रकोप

महेश शिवा

पूरे वर्ष अलग-अलग समय पर बीमारियों का क्रम जारी रहता है। यह भी कहा जा सकता है कि बीमारियां मौसम बदलने का पूरे वर्ष इंतजार करती है और जैसे ही मौसम बदलता है कि ये मनुष्य को अपनी चपेट में ले लेती हैं। आदमी भी इनसे बचने के लिए पहले सही उपयुक्त उपाय नहीं करता।

वास्तव में हम सभी कुछ बीमारियों को तो न्योता देकर बुलाते हैं। हमें मौसम के अनुरुप ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। मौसम के अनुरुप ही खाने पीने की वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। मच्छर एक ऐसा जीव है, जो यूं तो साल भर पाया जाता रहता है, लेकिन जुलाई से नवंबर माह तक यह जीव मनुष्य को डंक मारता रहता है। मच्छर के काटने से डेंगू, दिमागी बुखार और मलेरिया जैसे घातक रोग होते हैं। मलेरिया जुलाई से नवंबर के बीच फैलने वाली एक ऐसी बीमारी है, जिसका निदान सही ढंग से किया जाए तो अकसर रोगी असमय ही मृत्यु का शिकार हो जाता है। मलेरिया के बारे में यदि हम सभी को सही जानकारी हो तो इससे काफी हद तक बचा जा सकता है। इन दिनों पूरे देश में मलेरिया अपना प्रकाप फैला रहा है। करीब पांच लाख से अधिक व्यक्ति मलेरिया रोग की चपेट में चुके हैं। इन दिनों ओड़िसा में मलेरिया के सर्वाधिक रोगी पाए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाकों में भी मलेरिया का मच्छर डंक मार रहा है।

कैसे फैलता है मलेरिया

मलेरिया एक विशेष प्रकार के मच्छर के काटने से फैलता है, जिसको एनाफ्लीज के नाम से जाना जाता है। मच्छर की लार एक परजीवी होता है, जो मनुष्य के शरीर में जाकर मलेरिया का कारण बनता है। मौसम बदलने पर यानि जुलाई से नवंबर तक मच्छरों की संख्या बढ़ जाती है। मौसम के कुछ विशेष परिस्थितियों में परजीवी तथा मच्छर, दोनों की उम्र भी बढ़ जाती है। मादा एनाफ्लीज नामक मच्छर में पाए जाने वाले परजीवी को प्लाज्मोडियम के नाम से जाना जाता है। वैसे तो परजीवियों की संख्या 100 ये अधिक है, जो विभिन्न प्रकार के पशु पक्षियों में पाए जाते हैं, लेकिन उनके काटने से हमारे शरीर पर मलेरिया का आघात नहीं होता है। कुछ परजीवी बंदर, घोड़ों हाथियों आदि जानवरों में पाए जाते हैं। मलेरिया केवल चार प्रकार के परजीवियों के शरीर के अंदर ही होता है और ये परजीवी मच्छर द्वारा ही शरीर में जाते हैं तथा रक्त में मिल जाते हैं।

मादा एनाफ्लीज नामक मच्छर जब मनुष्य पर अपना हमला करता है तो उसकी लार में मौजूद परजीवी मानव शरीर के भीतर प्रवेश करते हैं। मानव शरीर में बुखार फैलाने वाले इस प्रकार के चार परजीवी होते हैं, जिन्हे प्लाज्मोडियम मलेरी, ओवेल, वायवैक्स तथा फैल्सीपैरम कहा जाता है। ये परजीवी शरीर में पहुंचने पर तुरंत अपना परभाव नहीं दिखाते, बल्कि धीरे-धीरे शरीर में जिगर की कोशिकाओं में मजबूती से पकड़ बनाते हैं और अधिक संख्या में होने पर खून के साथ संचरण करने लगते हैं। हमारा रक्त दो प्रकार की कणिकाओं से मिलकर बना होता है, जिनको लाल रक्त कणिका तथा श्वेत रक्त कणिका कहा जाता है।यह परजीवी खून में मिल जाता है तो लाल कणिकाओं को नष्ट करने लगता है, जिसका मुख्य कारण मलेरिया होता है।

परजीवी मच्छर की लार से निकलकर मनुष्य में जाता है, अर्थात पहले परजीवी मच्डर के शरीर में चला जाता है और फिर मच्छर आदमी के शरीर से रक्त चूसता है तो वह परजीवी को भी अपने पेट में ले जाता है। परजीवी मनुष्य को मलेरिया का शिकार बनाकर खुदाी मच्छर का शिकार हो जाता है। इस प्रकार परजीवी का जीवन चक्र इस मादा मच्छर से शुरु होता है और उसी में समाप्त हो जाता है।

वैसे तो पूरे साल में कभी कभी आपको मच्छर देखने को मिल जाएंगे, लेकिन जब वायु में थोड़ी नमी होती है, तापमान साधारण रहता है, वर्षा होती है, जगह-जगह पानी भरा रहता है, तब मादा मच्छर अंडे देने के लिए व्याकुल रहती है। ऐसा भी निश्चित नहीं कि इन दिनों में ही मलेरिया होगा। जब कभी हभी इसका परजीवी शरीर में जाएगा, मलेरिया का कारण बनेगा।

लक्षण

प्लाज्मोडियम नामक परजीवी जब रक्त कणिकाओं में मिल जाता है तो लाल रक्त कणिकाओं को नष्ट कर देता है, जिससे शरीर में बुखार आता है। मलेरिया का सबसे पहला लक्षण तो बुखार ही है। यह जरुरी नहीं होता कि बुखार का कारण यही परजीवी हो। इसको कुछ विशेष प्रकार के लक्षणों से ही जाना जाता है। प्रारम्भिक अवस्था में सिर में हलका दर्द होता या सिर में भारीपन महसूस होता है और तेज ठंड लगती है। उस समय यदि रोगी को कंबल में भी लपेट दिया जाए तो उसे ठंड लगती रहती है, लेकिन ठंड कुछ देर तक ही लगती है। कभी कभी तो कंपकंपी बंध जाती है। कुछ समय के बाद तकरीबन एक या दो घंटे बाद ठंड लगना कम हो जाती है और रोगी का जी मिचलाता है। किसी किसी को तो उल्टी भी हो जाती है, लेकिन सिर का भारीपन समाप्त नहीं होता। रोगी से पूछने पर उसका जवाब आता है कि सिर फटा जा रहा है। चक्कर रहे हैं। इसके बाद रोगी को अचानक गरमी महसूस होने लगती है। इतनी गरमी लगती है कि शरीर से पसीने छूटने लगते हैं। ऐसी अवस्था में शरीर का तापमान कुछ कम हो जाता है, लेकिन रोगी अत्यंत कमजोरी महसूस करता है, जिसके कारण रोगी को नींद जाती है। सर्दी लगने और पसीने आने का क्रम जारी रहता है। ऐसी अवस्था में समझना चाहिए कि रोगी में मलेरिया के लक्षण हैं, जो परजीवी के कारण हुआ है। किसी किसी रोगी में देखा गया है कि उसे ज्यादा ठंड नहीं लगती, लेकिन तापमान सामान्य होने पर भी वह सर्दी महसूस करता है और बुखार का क्रम जारी रहता है यानि शरीर का तापमान कम नहीं होता। इसका कारण यह है कि रोगी के शरीर में वे क्रियाएं इतनी जल्दी होती हैं, जिससे ये लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इसके अलावा रोगी की अवस्था में परिवर्तन परजीवी पर भी निर्भर करती है। क्योंकि मनुष्य में मलेरिया फैलाने वाले चार प्रकार के परजीवी होते हैं। मलेरिया की पहली अवस्था को पहचानना थोड़ा मुश्किल होता है, जब फैल्सीफैरम नामक परजीवी से हुआ हो, क्योंकि इस प्रकार के बुखार में भी लक्षण सामान्य होते हैं। तो रोगी को तेज सर्दी लगती है और नही जोर से पसीना आता है।

अधिकांश मलेरिया तब होता है, जब मौसम तो ज्यादा गरम होता है और ही ज्यादा ठंडा यानि तापमान साधारणत: 25 से 35 डिग्री के बीच रहता है। हवा में आद्रता भी बनी रहती है और मच्छरों की भी भरमार होती है। एक बात ध्यान में जरुर रखें कि प्रत्येक मच्छर एनाफ्लीज नहीं होता। कुछ टाइगर मच्छर भी होते हैं, जिनसे डेंगू फैलता है। इसलिए बुखार आने पर रक्त की जांच अवश्य कराई जानी चाहिए। कभी कभी मलेरिया के सभी लक्षण रोगी में दिखाई देते हैं और वह साधारण बुखार की दवाईयों का ही सेवन करता है। जिससे शरीर का तापमान तो कम हो जाता है, लेकिन शरीर में मौजूद परजीवी नहीं मर पाते, जिससे रोगी की हालत बिगड़ती जाती है, यदि मलेरिया का कोई लक्षण दिखाई दे तो खून की जांच करवाना आवश्यक है। इस प्रकार रोगी के बुखार के कारण का पता लगाया जा सकता है।

मलेरिया का शरीर पर प्रभाव

मलेरिया होने पर शरीर में सबसे पहले प्रभाव रक्त पर पड़ता है, क्योंकि रक्त के लाल कणों के नष्ट होने पर ही बुखार आता है। शरीर में जब परजीवी ज्यादा संख्या में होते है तो वे अपना प्रभाव एक समूह के रुप में मस्तिष्क, गुर्दों, जिगर आंतों पर डालते हैं। कभी कभी इनका इतना भयंकर प्रभाव होता है कि रोगी को मृत्यु का सामना भी करना पड़ जाता है। मलेरिया के ये परजीवी मच्छर द्वारा शरीर के अंदर जाते हैं और रक्त में मिल जाते हैं। रक्त के संचरण के साथ मनुष्य के जिगर तक जा पहुंचते हैं। वैसे तो जिगर का कार्य विषैले पदार्थ को विषमुक्त कर शरीर को स्वस्थ रखना है, परंतु परजीवी के लिए जिगर घर की तरह कार्य करता है। जिगर दो बडेÞ पिंडों में बना होता है, जिनको लोब्स कहा जाता है। इन पिंडों में भी छोटे-छोटे पिंड होते हैं। ये छोटे पिंड विशेष प्रकार की लाखों कोशिकाओं से बने होते हैं। परजीवी इन्ही कोशिकाओं में पलता है,जिगर में ही ये परजीवी अधिक सक्रिय हो जाते हैं और फिर लाल रक्त कणिकाओं में प्रवेश करते हैं, जिससे लाल रक्त कणिकाएं टूटती हैं और मनुष्य मलेरिया का शिकार होता है। मलेरिया का प्रभाव दिमाग पर भी पड़ता है। दिमाग शरीर में हवा और रक्त का संतुलन रखता है, लेकिन जब रक्त में लाल कणों की संख्या कम हो जाती है तो कभी कभी मस्तिष्क अपना संतुलन खोल बैठता है। ऐसी स्थिति हमेशा नहीं होती, लेकिन मलेरिया होने पर इस बन जाती है। इसी प्रकार मलेरिया के परजीवी आंतों और गुर्दों पर भी अपना प्रभाव छोड़ते हैं और इसकी सजा शरीर के सभी अंगों को भुगतनी पड़ती है। मलेरिया बुखार की दवा काफी गरम होती है, इसलिए मलेरिया बुखार की दवाओं का सेवन दूध से करना चाहिए।

बचने के उपाय

= कूलर की टंकी को सप्ताह में एक बार अवश्य साफ करें, दुबारा पानीारने से पहले टंकी अच्छी तरह सुखा लें। जहां पर कूलर की टंकी साफ करना संाव हो, वहां कू लर में एक चम्मच डीजल, पेट्रोल या मिट्टी का तेल नियमित रुप से डाले।

= घर एवं आसपास पानी एकत्रित होने दें।

= घरों की नियमित रुप से सफाई करें और जिन स्थान पर हाथ जा सकता हो, वहां छिपे मच्छरों को मारने के लिए कीटनाशक का प्रयोग करें। आज बाजार में हिट, मोर्टिन आदि कई प्रकार के ब्रांडेट कीटनाशक स्पे्र मशीन समेत उपलब्ध हैं, जो एक सौ रुपये तक आसानी से मिल जाते हैं।

= रुके हुए पानी के स्थानों को मिट्टी से भर दें। यह यह संभव हो तो कुछ बूंद मिट्टी तेल उसमें डाल दें।

= सोते समय मच्छरदानी अथवा मच्छर भगाने की क्रीम का प्रयोग करें।

दैनिक कार्य के लिए पानी एकत्रित करने वाले बर्तनों तथा पानी की टंकी ढक कर रखे तथा एक सप्ताह से ज्यादा दिन तक पानी एकत्रित होने दे।

= जहां तक संभव हो सके पूरी आसतीन की शर्ट तथा जुराब का प्रयोग करें, ताकि मच्छर के काटने से बचा जा सके।

= तेज बुखार पर चिकित्सक से संपर्क करें। डेंगू, मलेरिया का शक होने पर नजदीक के अस्पताल मेंार्ती हो जाएं।

= मकान की छतों पर पडेÞ टूटे प्लास्टिक मिट्टी के बर्तन, डिब्बे टायर आदि सामान हटा दें।

= माह सितंबर से दिसंबर तक बच्चों को शाम के समय खेत, जंगल में जाने दें।