शुक्रवार, 22 जुलाई 2011
आंखों से आंसू निकलवा रही प्याज
मौसम में नमी के कारण प्याज में लगा रोग
क्या उपोक्ताओं को फिर रूलाएंगे प्याज के ाव...? मौसम में नमी के कारण प्याज में सुर्रा रोग लग गया है, जिससे प्याज गलना शुरु हो गई है। रही सही कसर मौसम की नमी ने पूरी कर दी। प्याज की पैदावार कम रहने से जहां प्याज किसानों को ारी हानी हुई है, वहीं प्याज व्यापारी ी इस बार आंसु बहाने को मजबूर है।
आम तौर पर फरवरी में प्याज की पौध तैयार कर ली जाती है और मार्च में क्यारियों मे इसकी रोपाई कर दी जाती है। अप्रैल, मई मंे फसल तैयार हो जाती है। पिछले तीन वर्षों मंे प्याज की पैदावार व रेट सामान्य रही, जिस कारण प्याज किसानों व व्यापारियों को मुनाफा हुआ। वर्ष 2005-06 में प्याज हाईटेंशन मूल्य पर बाजार में बिकवाली हुई। इस बार ी उत्पादन की को देखते हुए लगता है प्याज एक बार उपोक्ताओं के फिर आंसू बहाने पर मजबूर कर देगा।
फसल तैयार होने पर अपै्रल, मई मंे जब प्याज की खुदाई प्रारंभ कर दी जाती है। मौसम खुस्क रहता है जिससे फसल अच्छी रहती है। किन्तु इसके विपरीत इस बार प्याज खुदाई के समय ही शुरू हुई वर्षा ने प्याज की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। बेमौसमी बरसात के कारण फसल में सुर्रा रोग फैल गया। जिससे पैदावार घटकर 50 प्रतिशत रह गई। मौसम की मार से व्यापारी ी नहीं बच पाये। व्यापारियों द्वारा टाट्टे में लगाई गई प्याज ी गलने लगी। व्यापारी रमेशचंद का कहना है कि प्याज के गलने का कारण लू न चलना है। इस बार मौसम में नमी का वातावरण रहा, जिससे प्याज सूख नहीं पाई। एक अनुमान के अनुसार पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार 25 प्रतिशत फसल ही बाजार में पहुंच पाएगी।
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दस रुपये किलो बिका था प्याज
गंगोह। जुलाई, अगस्त 2008 में फुटकर मे प्याज के ाव 7 से 10 रूपये तक बिका था। 2009-10 में ी ाव सामान्य तौर पर 8 से 12 रूपये तक ही सीमित रहा। जबकि इस बार बाजार ाव 15 से 20 रूपये तक जुलाई माह में ही जा पहंुचा है। फसल रोग ग्रस्त होने व व्यापारियों द्वारा संग्रहीत प्याज के गल जाने से बाजार में इस बार पिछले वर्षों की उपेक्षा प्याज की उपलब्धी बहुत कम नजर आ रही है। बाजार के व्यापारी पिंकी, नसीम, राजू, देशबंधु, मौ. इशा, सुक्कड, एसीलाल आदि का अनुमान है कि सीजन के अंत मे प्याज के ाव 2006 के 30 से 50 रू. के आंकडे को छू सकते है। नमी व सर्रा रोग के कारण घटी प्याज की मात्रा व उंचे ाव उपोक्ताओं को एक बार फिर आंसु बहाने पर मजबूर कर सकते है।
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महेश शिवा
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