सोमवार, 25 जुलाई 2011

अरबी भी मुरीद रहे है वेद ज्ञान के

श्रीगोपाल नारसन

‘अया मुबारकल अर्जे योशेय्ंये नुहामिनल! हिन्दे फाराद कल्लाहों मैय्योनज्जेे ला जिक्रतुन। वहल तजल्लेयतुन एनाने सहनी अरबातुन! हाजही युनज्जेल रसूलों ज़िक्रतान मिलन हिन्दतुन।’ अरबी भाषा में लिखी एक कविता की उपरोक्त पक्ंितयों में अरब के कवि लावी ने हजरत मुहम्मद साहब के जन्म से 2400 साल पहले ही लिख दिया था कि हे हिन्दुस्तान की भूमि तू आदर करने लायक है क्योकि तुझमें ही अल्लाह ने अपने सत्य ज्ञान को रोशन किया है।
‘वेद महिमा’ शीर्षक से लिखी गई यह कविता ‘सीरूल उकूल’ नामक पुस्तक में पं्रकाशित है, जिसे धरोहर कविता के रूप् में अस्माई मलेकुम ने संकलित किया है। अरबी भाषा की इस पांच दोहों में सम्माहित कविता में चारों वेदों को ईश्वरीय ज्ञान रूप् का ध्योतक बताते हुए कहा गया है कि ये वेद हमारे मानसिक नेत्रों को शीतल ऊषा व अद्वितीय आकर्षण की ज्योति प्रदान करते है।
प्रखर विद्वान ओमप्रकाश वर्मा जिन्होंने चारो वेेदों का भाषय तैयार करने में 16 वर्षो तक वेद साधना की, द्वारा अनुवादित अरबी कविता के सार में कहा गया कि परमेश्वर ने हिन्दुस्तान में अपने पैगम्बरों के दिलों में चारों वेदों का प्रकाश किया। ताकि पृथ्वी पर रहने वाले सभी लोगों को ईश्वर उपदेश के रूप् में वेद का ज्ञान सदैव मिलता रहे और यह ज्ञान आम जीवन में क्रियान्वित होकर सदाचरण का आधार बने।
अरब के ही एक अन्य कवि जिरहम विन्तोई ने भी अपनी ‘सेरूअल ओकुल’ कृति में नसीहत दी कि हम लोग अल्लाह को भूल गये थे, सब विषय वासनाओं में फंसे थे। अज्ञान के अंधकार ने पूरे देश को घेर रखा था। ऐेसे प्रतिकूल समय में सम्राट विक्रमाद्वितीय ने हम पर कृपा की और धर्म का पवित्र सन्देश जन-जन तक फैलाया जिससे अरब अमीरात में हिन्दुस्तान से आए तेजस्वी विद्वानों की बदौलत ज्ञान की चमक पैदा हुई। जिससे स्पष्ट है कि भारत सदियों से दुनियाभर के देशों को ज्ञान की सीख देता रहा है। तभी तो भारतीय संस्कृति, कला, धर्म, मन्दिर, उत्सव, रहन-सहन, खान-पान और अभिव्यक्ति की झलक कही न कही दुनियाभर के देशों में देखने व जानने को मिलती है।
वेद एवं हिन्दी साहित्य पर गहरी पकड़ रखने वाले डा0 महेन्द्र पाल काम्बोज तो खुले रूप् में कहते है कि वस्तुतः हिन्दुस्तान सदैव से संसार भर को सन्मार्ग दिखाता आया है। इसी कारण प्रायः हर देश में कही न कही भारतीयता व यहां की धरोहर की छाय सहज रूप् में देखने को मिलती है। भारत की रामलीला और दशहरा-दीपावली जैसे पर्वो की झलक मैक्सिकों, मारीशस, इन्डोनेशियां, पेरू, थाईलैण्ड़ जैसे देशों में देखा जाना आम बात है। जिस तरह से जर्मनी में वेद को विकास की आधार शिला माना जाता है उसी तरह यूरोप, इरान, इराक व यूनान देशों में भी भारतीयता की झलक किसी न किसी रूप् में परिलक्षित होती है।
दुनियाभर में कई ऐसे देश है जहां भारत की तरह ही रीति रिवाज, धर्म-कर्म, पूजा-पाठ, संस्कार देखने को मिलते है। दक्षिण अमेरिका में नागवंशी शिल्पियों की आबादी सिद्ध करती है कि भारत पूरे दुनिया में सदियों से पांव पसारे हुए है और राजनीतिक रूप् में न सही वेद ज्ञान व धर्म-संस्कृति रूप् में संसार को भारत राह दिखाता रहा है। आज भी शायद ही ऐसा कोई देश हो जहां भारत की प्रतिभाएं अपने ज्ञान का लोहा न मनवा रही हो।

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