शनिवार, 16 जुलाई 2011

सावन के मेघ

जाने कहाँ से ये हैं आते, हृदय को मेरे रौंद मुस्काते
क्षितिज पार ओझल हो जाते, ये सावन के मेघ

जग में उजियारा होने पर भी, मेरे दुख के तम की भांति
श्याम दिनों दिन होते जाते, ये सावन के मेघ

कोई इन से भी बिछड़ गया है, बरस-बरस कर विरह जताते
जल नहीं आँसू बरसाते, ये सावन के मेघ

संदेश प्रेम का जग को दे कर, सबके दिलों का मेल कराते
मन मसोस पर खुद रह जाते, ये सावन के मेघ

सुंदर बदली जो मिली गत वर्ष, नयन उसी को ढूंढे जाते
जीवन उसी को खोज बिताते, ये सावन के मेघ

पा जांए उस प्रियतमा बदली को, यही सोच कर ये हैं छाते
किंतु नहीं निशानी कोई पाते, ये सावन के मेघ

चपला देती भंयकर पीड़ा, उड़ा ले जाती घोर समीरा
लौट वहीं पर फिर से आते, ये सावन के मेघ


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